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Toggleनमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका हमारे वेबसाइट पर जहाँ मिलती है आपको रोज नयी नयी जानकारियां और ढेर सारे रोचक तथ्य। आज हम भारतीय मंदिरों की उस अनूठी परंपरा के बारे में बात करेंगे जिसमें मंदिर सुबह जल्दी खुलते हैं और मन्दिर के द्वार रात 12 बजे से पहले बंद हो जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिरों में दिन की शुरुआत और समाप्ति इतनी विशेष क्यों होती है? आज के इस ब्लॉग में हम इसी रहस्य को उजागर करेंगे। तो चलिए, इस अद्भुत यात्रा पर हमारे साथ बने रहिए।
भारत में मंदिरों का अपना एक अलग ही महत्व है। ये मंदिर न केवल आध्यात्मिक स्थल हैं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र भी हैं। मंदिरों में पूजा की विधियाँ सुबह बहुत जल्दी शुरू होती हैं, आमतौर पर सूर्योदय से पहले। इसे ‘ब्रह्म मुहूर्त’ कहा जाता है, जो कि योग और साधना के लिए उत्तम समय माना जाता है।
सुबह की पूजा या ‘मंगला आरती’ से दिन की शुरुआत होती है जिसमें देवता को जगाया जाता है, उन्हें स्नान कराया जाता है, और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। दिन भर में कई पूजा सत्र होते हैं, जिसमें भोग लगाना, धूप, दीप दान करना और संध्या आरती शामिल हैं। मंदिर आमतौर पर शाम को सूर्यास्त के बाद भी खुले रहते हैं ताकि लोग अपने काम से लौटने के बाद दर्शन कर सकें। हालांकि, रात को 12 बजसे पहले मन्दिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं, इसके पीछे यह विचार है कि देवता भी विश्राम करते हैं। इसे ‘शयन आरती’ कहते हैं, जिसमें देवता को रात्रि विश्राम लिए तैयार किया जाता है।
रात को 12 बजे से पहले मन्दिर के द्वार बंद के ऐतिहासिक कारण
सुरक्षा कारण
प्राचीन समय में, मंदिरों में अक्सर बहुमूल्य वस्तुएँ और दान की गई संपत्तियाँ होती थीं। रात के समय सुरक्षा की कमी के कारण चोरी और लूटपाट का खतरा बढ़ जाता था। इसलिए, मंदिरों को जल्दी बंद कर देना सुरक्षा का एक उपाय था।
अनुशासन और नियम
भारतीय संस्कृति में दिनचर्या का बहुत महत्व है। प्राचीन काल से ही शुभ कामों के लिए सुबह के समय को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है, और रात के समय को विश्राम का समय। इसलिए, मन्दिर के द्वार शाम को जल्दी बंद कर दिए जाते हैं ताकि देवता और पुजारी दोनों को विश्राम मिल सके।
रात को 12 बजसे पहले मन्दिर के द्वार बंद के वैज्ञानिक कारण
मन्दिर के द्वार का संबंध प्राकृतिक प्रकाश से
बिजली के आविष्कार से पहले, मंदिरों में प्राकृतिक प्रकाश का उपयोग किया जाता था। रात के समय प्राकृतिक प्रकाश की अनुपस्थिति में मंदिरों को रोशन करने के लिए वैकल्पिक साधनों की आवश्यकता होती थी, जो कि अक्सर पर्याप्त नहीं होते थे।
ऊर्जा संरक्षण
जल्दी बंद करने से ऊर्जा की बचत होती है, जो कि आज भी एक महत्वपूर्ण कारण है। रात के समय में बिजली की खपत कम करने के लिए मंदिरों को जल्दी बंद करना पर्यावरण और ऊर्जा संरक्षण के दृष्टिकोण से लाभकारी होता है।
पर्यावरणीय अनुकूलन
मंदिरों की संरचना और स्थापत्य ऐसे बनाए गए हैं कि वे प्राकृतिक रोशनी और वायु का अधिकतम उपयोग कर सकें। दिन के उजाले में मंदिर स्वाभाविक रूप से रोशन रहते हैं, जिससे बिजली की खपत कम होती है। रात में, प्राकृतिक प्रकाश की कमी के कारण, अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे ऊर्जा की खपत बढ़ती है। इसलिए, ऊर्जा की बचत के लिए रात को मन्दिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं।
जैविक घड़ी का सम्मान
मनुष्य की जैविक घड़ी या सर्कैडियन लय प्राकृतिक रोशनी के अनुसार नियंत्रित होती है। दिन में सक्रिय रहना और रात में आराम करना हमारे जैविक घड़ी के अनुकूल है। मंदिरों को भी इसी जैविक चक्र के अनुसार संचालित किया जाता है, जिससे कि पुजारियों और भक्तों की स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित हो सके।
शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना
रात के समय को शांति और आत्म-चिंतन के लिए आदर्श माना जाता है। मंदिरों को जल्दी बंद करना न केवल शांति प्रदान करता है, बल्कि यह आस-पास के वातावरण को भी स्थिर बनाता है, जिससे कि आध्यात्मिक वातावरण को बनाए रखा जा सके।
स्वच्छता और रख-रखाव
रात के समय से बंद करने से स्वच्छता और दैनिक रख-रखाव के लिए समय मिलता है। इस समय का उपयोग मन्दिर के परिसर को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखने में किया जाता है, जिससे अगले दिन भक्तों के लिए एक सुखद और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित हो सके।
तो दोस्तों, यह थी हमारी आज की चर्चा जिसमें हमने परंपरा न केवल देवताओं के प्रति हमारी आस्था को दर्शाती है बल्कि यह भी बताती है कि कैसे हम उन्हें अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं। उम्मीद करते हैं यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह ब्लॉग उपयोगी लगा हो, तो कृपया इसे लाइक करें, शेयर करें और हमारे वेबसाइट को विजिट करना न भूलें।
धन्यवाद और नमस्कार।
Reference
- https://www.herzindagi.com/hindi/society-culture/why-are-temple-doors-closed-at-night-article-238961
- https://hi.quora.com/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A6
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