हिंदुत्व: भारतीय सांस्कृतिक पहचान का राजनीतिक सशक्तिकरण

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥

i.e.,

O loving Motherland, I always salute you! On this Hindu land, I have grown up happily with your nurture and care. O most auspicious and sacred land, for your sake I offer this mortal body. I bow to you again and again.. 

नमस्कार दोस्तों

स्वागत है आपका हमारे चैनल पर। आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जिसने भारतीय राजनीति को बहुत गहराई से प्रभावित किया है:- हिंदुत्व। अक्सर गलत समझा जाने वाला और कभीकभी गलत प्रस्तुत किया जाने वाला, हिंदुत्व एक जटिल और बहुआयामी विचारधारा है। इस ब्लॉग में, हम इसके उत्पत्ति, प्रमुख सिद्धांतों और भारतीय राजनीति पर इसके प्रभाव का पता लगाएंगे। चाहे आप इस शब्द से परिचित हों या इसे पहली बार सुन रहे हों, यह व्यापक मार्गदर्शिका आपको यह समझने में मदद करेगी कि हिंदुत्व वास्तव में क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है। तो चलिए, शुरू करते हैं|

हिंदुत्व - राजनीतिक विचारधारा [Hindutva - Political Ideology(Hindi)]

हिंदुत्व का उत्पत्ति और प्रमुख सिद्धांत (Origin and main principles of Hinduism)

हिंदुत्व की उत्पत्ति (Origin of Hinduism)

  • हिंदुत्व शब्द का पहली बार उल्लेख विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में अपनी पुस्तिका “हिंदुत्व: हू इज़ ए हिंदू?” में किया था। सावरकर, (एक स्वतंत्रता सेनानी और विचारक) ने इस पुस्तक के माध्यम से हिंदुत्व को एक नई परिभाषा और दृष्टिकोण दिया। उनके लिए हिंदुत्व केवल धार्मिक हिंदू धर्म तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान थी। सावरकर का मानना था कि हिंदुत्व का अर्थ केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों से नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों से है जो भारत की भूमि को अपनी पवित्र भूमि (पुण्यभूमि) और पितृभूमि (पैतृक भूमि) मानते हैं। इसका मतलब यह है कि जो लोग भारत में जन्मे हैं और जिनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें भारत में हैं, वे सभी हिंदुत्व के अंतर्गत आते हैं। 
हिंदुत्व का उत्पत्ति और प्रमुख सिद्धांत (Origin and main principles of Hinduism)

सावरकर ने हिंदुत्व को तीन मुख्य बिंदुओं पर आधारित किया जो की इस प्रकार है – 

भूगोलिक एकता (Geographical Unity)

  • उनके अनुसार, हिंदुत्व का पहला तत्व भारत की भौगोलिक सीमाओं के भीतर रहने वाले लोगों की एकता है। भौगोलिक एकता का अर्थ है कि पूरे भारतवर्ष, हिमालय से हिंद महासागर तक, हिंदुओं की पितृभूमि होनी चाहिए। पितृभूमि भारत (विस्तृत भारत, सप्त सिंधु) को हिंदू कहते हैं। यह एकता सिर्फ भौगोलिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। भारत की भूमि को पवित्र मानना और उसकी रक्षा करना हिंदुत्व का एक प्रमुख उद्देश्य है।

सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity)

  • सावरकर ने हिंदुत्व को एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, भारतीय संस्कृति की जड़ें हिंदू सभ्यता में हैं और यह संस्कृति सभी भारतीयों को जोड़ती है, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों। यह संस्कृति भारतीयों के जीवन के हर पहलू में प्रकट होती है, जैसे कि उनके त्योहार, रीति-रिवाज, भाषा और साहित्य । भारत की जमीन केवल जन्मस्थान नहीं होनी चाहिए; यह धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से पवित्र जगह होनी चाहिए।

धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance)

  • यद्यपि सावरकर ने हिंदुत्व को हिंदू धर्म से अलग किया, उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया। उनके अनुसार, हिंदुत्व का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के बीच सहिष्णुता और सामंजस्य को बढ़ावा देना है, बशर्ते वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के साथ सामंजस्य में हों।
सावरकर ने हिंदुत्व को तीन मुख्य बिंदु

 

सावरकर के इस दृष्टिकोण ने हिंदुत्व को एक व्यापक और समावेशी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया, जो केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदुत्व भारतीय राष्ट्रवाद का एक महत्वपूर्ण अंग है और यह भारतीय समाज को एकजुट रखने में मदद करता है।
इस प्रकार, “हिंदुत्व: हू इज़ ए हिंदू?” के माध्यम से सावरकर ने हिंदुत्व को भारतीय संस्कृति, इतिहास और भूगोल के साथ गहराई से जोड़ा और इसे एक व्यापक राजनीतिक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी यह विचारधारा आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसी संगठनों के माध्यम से भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी।

हिंदुत्व के प्रमुख सिद्धांत (Main principles of Hinduism)

प्रमुख सिद्धांत

  • हिंदुत्व की विचारधारा चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है: सांस्कृतिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता, राष्ट्रवाद और अखंड भारत। आइए इन सिद्धांतों को विस्तार से समझते हैं।

सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity)

हिंदुत्व का मानना है कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर हिंदू सभ्यता पर आधारित है। भारतीय संस्कृति को समझने और परिभाषित करने के लिए हिंदुत्व एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण अपनाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जा सकता है:

  • साझा सांस्कृतिक प्रतीक: – भारत के त्योहार, संगीत, नृत्य, साहित्य और कला सभी हिंदू सभ्यता से जुड़े हैं। यह साझा सांस्कृतिक प्रतीक भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधते हैं।
  • ऐतिहासिक धरोहर: – भारत की ऐतिहासिक धरोहर, जैसे कि प्राचीन मंदिर, ग्रंथ, और स्थापत्य कला, सभी हिंदू संस्कृति के अंतर्गत आते हैं। हिंदुत्व इस धरोहर को संरक्षित करने और इसके महत्व को बनाए रखने पर जोर देता है।
  • सांस्कृतिक मूल्य: – जैसे कि सत्य, अहिंसा, धर्म और कर्तव्य भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण मूल्य हैं। हिंदुत्व इन्हें बढ़ावा देने और समाज में फैलाने का प्रयास करता है।
हिंदुत्व - सांस्कृतिक एकता (Hindutva - Cultural Unity)

धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance)

यद्यपि हिंदुत्व हिंदू संस्कृति पर जोर देता है, यह अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता का समर्थन करता है, बशर्ते वे भारतीय संस्कृति के साथ सामंजस्य में हों। इसका अर्थ है कि:-

  • धार्मिक बहुलता: – हिंदुत्व विभिन्न धर्मों की उपस्थिति को स्वीकार करता है और उनके अस्तित्व का सम्मान करता है, बशर्ते वे भारतीय मूल्यों और परंपराओं के प्रति सम्मान दिखाएं।
  • सामंजस्य और सहयोग: – हिंदुत्व का उद्देश्य विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा देना है, ताकि समाज में शांति और सद्भाव बना रहे।
  • धार्मिक स्वतंत्रता: हिंदुत्व व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करता है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म का पालन स्वतंत्रता से कर सके, बशर्ते यह भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप हो।
हिंदुत्व - धार्मिक सहिष्णुता (Hindutva - Religious Tolerance)

राष्ट्रवाद (Nationalism)

हिंदुत्व का एक मुख्य सिद्धांत यह है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इसकी राजनीति, समाज और संस्कृति को इसी दृष्टिकोण से संचालित होना चाहिए। यह राष्ट्रवाद निम्नलिखित तत्वों पर आधारित है:-

  • राष्ट्रीय गौरव: – हिंदुत्व भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने का आह्वान करता है। यह भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव और आत्मसम्मान को बढ़ाने का प्रयास करता है।
  • राष्ट्रीय एकता: – हिंदुत्व सभी भारतीयों को एक राष्ट्र के रूप में देखता है, जहां धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के आधार पर कोई विभाजन नहीं हो।
  • राष्ट्र की सेवा: – हिंदुत्व अपने अनुयायियों को राष्ट्र की सेवा करने, देश की समृद्धि और सुरक्षा के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है। यह देशभक्ति और राष्ट्रीय कर्तव्य को महत्वपूर्ण मानता है।
हिंदुत्व - राष्ट्रवाद (Hindutva - Nationalism)

अखंड भारत (Unified India)

  • अखंड भारत की अवधारणा हिंदुत्व के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में उभरती है। यह भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक अखंडता पर जोर देती है।
  • भौगोलिक अखंडता: – हिंदुत्व मानता है कि भारत की वर्तमान सीमाओं को विस्तार करते हुए उन क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए जो ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा रहे हैं, जैसे कि पाकिस्तान और बांग्लादेश। यह अवधारणा भारत की प्राचीन भूगोलिक इकाई को पुनः स्थापित करने का समर्थन करती है।
  • सांस्कृतिक अखंडता: – हिंदुत्व भारतीय संस्कृति को अखंड मानता है और इसका उद्देश्य इसे संरक्षित और प्रोत्साहित करना है। यह विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने पर जोर देता है।
  • राष्ट्रीय पुनर्जागरण: – अखंड भारत की अवधारणा भारतीय समाज में एक राष्ट्रीय पुनर्जागरण की भावना को जगाने का प्रयास करती है, जहां सभी भारतीय अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों के प्रति गर्व महसूस करें और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाएं।
हिंदुत्व - अखंड भारत (Hindutva - Unified India)

हिंदुत्व और भारतीय राजनीति (Hinduism & Indian Politics)

राजनीतिक परिदृश्य में हिंदुत्व का उद (Rise of Hindutva in the political scenario)

  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद, हिंदुत्व एक प्रमुख राजनीतिक आंदोलन के रूप में उभर कर आया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनसंघ जैसे संगठन इसके प्रमुख प्रचारक बने। 1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के गठन के साथ, हिंदुत्व ने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया।
  • अयोध्या आंदोलन – 1990 के दशक में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने हिंदुत्व को एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बना दिया। इस घटना ने भारतीय राजनीति में हिंदुत्व की विचारधारा को मजबूती से स्थापित किया और BJP को एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरने में मदद की।
  • वर्तमान परिदृश्य – आज BJP और अन्य हिंदुत्व-समर्थित संगठनों के माध्यम से, हिंदुत्व भारतीय राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य प्रमुख नेताओं ने इसे राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है।
  • हिंदुत्व समर्थन – हिंदुत्व के समर्थक इसे भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता की सुरक्षा के रूप में देखते हैं। उनका तर्क है कि हिंदुत्व भारत की बहुलतावादी संस्कृति का संरक्षण करता है और इसे बाहरी आक्रमणों से बचाता है।
  • हिंदुत्व की आलोचना – हिंदुत्व की आलोचना करने वाले इसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी मानते हैं। उनका कहना है कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देता है और भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है।
हिंदुत्व और भारतीय राजनीति (Hinduism & Indian Politics)

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥

i.e.,

Sacrifice one for the sake of the family, sacrifice the family for the sake of the village, sacrifice the village for the sake of the nation, and sacrifice the world for the sake of the soul’s liberation.

आज के इस ब्लॉग में हमने हिंदुत्व की उत्पत्ति, इसके प्रमुख सिद्धांत और भारतीय राजनीति में इसके प्रभाव का गहराई से विश्लेषण किया। यह स्पष्ट है कि हिंदुत्व केवल एक धार्मिक विचारधारा नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान है जिसने भारतीय राजनीति को नया रूप दिया है। हिंदुत्व का भविष्य क्या होगा? क्या यह भारतीय राजनीति में एक सकारात्मक शक्ति बनकर उभरेगा या विवादों और विभाजन का कारण बनेगा? यह देखने वाली बात होगी।

वास्तव में, हिंदुत्व की प्रासंगिकता इसी पर निर्भर करती है कि यह अपनाया और लागू किया जाता है— यह समावेश, समानता और राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा देकर समाज को सशक्त बना सकता है; लेकिन इसका उद्देश्य बदतर हो सकता है अगर यह सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ और विभाजन का साधन बन जाए। हिंदुत्व को समझना सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक समरसता के रूप में नहीं, बल्कि राजनीतिक उपकरण के रूप में होना चाहिए।
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धन्यवाद।

जय श्री राम।। 

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